निगमन का आवरण (Lifting the Corporate Veil) हटाना क्या होता है ?

निगमन का आवरण हटाना (Lifting the Corporate Veil) क्यों और इसके लाभ और हानि

एक कम्पनी का अपने सदस्यों से स्वतंत्र और एक

पृथक्‌ विधिक अस्तित्व होता है। पृथक्‌ विधिक अस्तित्व का नियम सालोमन बनाम

सालोमन एण्ड कं लि. के वाद में अच्छी तरह से स्थापित हुआ। निगमन के समय

कम्पनी और इसके सदस्यों को अलग करने वाली एक रेखा खींची जाती है या एक

आवरण डाला जाता है। वास्तव में, कम्पनी व्यक्तियों की संस्था है और ये व्यक्ति ही

कम्पनी की सारी सम्मिलित सम्पत्ति के वास्तविक लाभकारी स्वामी होते हैं। कम्पनी

के निगमन के पीछे जो असली व्यक्ति होते हैं, कम्पनी का गठन होने और उसका

विधिक आस्तित्व हो जाने के बाद, उनकी उपेक्षा कर दी जाती है।

पृथक्‌ विधिक अस्तित्व के फलस्वरुप कम्पनी को बहुत से लाभ मिलते हैं जिनके बारे

में आपने इस इकाई के पिछले भाग में पढ़ा है। लेकिन जो कम्पनी का इमानदारी

से प्रयोग करते हैं उन्हें ही निगमन का लाभ मिलता है। परन्तु निगमन के आवरण

का अनुचित व छल कपट उपयोग करने पर कानून इस निगमन के आवरण के

उपेक्षा करता है और इसके पीछे जो व्यक्ति हैं और जो कपट के जिम्मेदार है

उनका पता लगाता है और कम्पनी तथा इसके सदस्यों को एक ही व्यक्ति मानता

है। जब न्यायालय कम्पनी की उपेक्षा करता है और कम्पनी के सदस्यों और

पद--अधिकारों में दिलचस्पी लेता है तब यह कहा जाता है कि निगमन के

आवरण को हटा दिया गया है। प्रो. गौवर के अनुसार, “जब कानून निगमित

आस्तित्व (Corporate Entity) की उपेक्षा करता है और इस विधिक मुखौटे के पीछे

जो व्यक्ति हैं उन पर ध्यान देता है तब इसे निगमित व्यक्तित्व का आवरण हटाना

कहते हैं।

परन्तु आप ध्यान रखें कि न्यायालय का निगमन के आवरण को हटाने का अधिकार

पूर्णतया विवेकाधीन है। न्यायालय कम्पनी का अवरण तभी हटाता है जब ऐसा

करना सार्वजनिक हित में होता है। Cotton Corporation Of India Ltd v G.C. Odusumathd(1999) वाद में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा कि विधि में, नियम

के तौर पर, निगमन का आवरण हटाना, स्वीकृति योग्य नहीं है जब तक कि कानून

में स्पष्ट शब्दों में नहीं दिया या चिंताजनक कारणों से जैसे छल कपट को रोकने की

चेष्टा या शत्रु देश के साथ व्यापार को रोकना है।

जिन परिस्थितियों में निगमन का आवरण हटाया जा सकता है उन्हें मोटे तौर पर

निम्नलिखित दो शीर्षकों के अन्तर्गत वर्गीकृत किया जाता है:

1) अभिव्यक्त सांविधिक प्रावधानों के अन्तर्गत, और

2) न्यायिक व्याख्याओं के अन्तर्गत

आइये, अब इनका विस्तार से वर्णन करें।

अभिव्यक्त सांविधिक प्रावधानों के अन्तर्गत (Under Express Statutory Provisions)

कम्पनी अधिनियम 2013 में ही ऐसे कुछ मामलों के लिए प्रावधान है जिनमें कम्पनी के निदेशक या सदस्य व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी ठहराये जा सकते हैं। ऐसे मामलों में यद्यपि कम्पनी का पृथक्‌ अस्तित्व तो रखा जाता है परन्तु कम्पनी के साथ-साथ

निदेशकों या सदस्यों को भी व्यक्तिगत रुप से उत्तरदायी ठहराया जाता है। यह मामले निम्नलिखित हैं:

1) प्रविवरण में मिथ्या कथन (धारा 34 व 35)

प्रविवरण में मिथ्या कथन के लिए कम्पनी और प्रत्येक निदेशक, प्रर्वतक, विशेषज्ञ और वह सभी व्यक्ति, जो प्रविवरण जारी करने के अधिकृत हैं, वे सभी उस प्रत्येक व्यक्ति को जिस ने उस मिथ्या कथन के विश्वास पर शेयर खरीदे हैं, हानि व हर्जाना देने के उत्तरदायी होंगे। इस के अतिरिक्त इन व्यक्तियों को कारावास जो छह महीने से कम नहीं होगा और जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है का दंड दिया जा सकता है, और वे जुर्माने के जिम्मेदार होंगे जो छल कपट की कुल रकम से कम नहीं होगा और यह इस राशि का तीन गुणा तक हो सकता है (धारा 34 और धारा 47 साथ पढ़े जाएं)। यद्धपि उपरोक्त कथित दंड से व्यक्ति बच सकता है यदि वह यह सिद्ध कर दे कि ऐसा कथन या लोप महत्वहीन था या उसके पास विश्वास करने का युक्‍क्तियुक्त आधार था और वह प्रविवरण जारी किए जाने के समय तक यह विश्वास करता रहा था कि कथन सत्य है या सम्मिलित किया जाना अथवा लोप किया जाना आवश्यक था।

2) आवेदन राशि को वापिस न करने की चूक (धारा 39)

कम्पनी जनता को जब प्रतिभूति जारी करती है तो, प्रविवरण (प्रास्पेक्टस) में दी गयी रकम न्यूनतम रकम के रुप में 30 दिन की अवधि या ऐसी अन्य अवधि के भीतर जो प्रतिभूति विनिमय बोर्ड द्वारा विनिर्दिष्ट की जाये, यदि प्राप्त नहीं की जाती तो ऐसी राशि को निर्धारित समय के भीतर और रीति में, वापस कर दिया जाएगा। Rule 11 of Companies (Prospectus and Secturies Rules 2014), के अनुसार, आवेदन पत्र की रकम शेयरों के जारी के बन्द होने 45 दिन के अन्दर वापिस करनी होगी। यदि नहीं तो कम्पनी के निदेशक जो कम्पनी के अधिकारी हैं वह संयुक्त और पृथक रूप से 15% वार्षिक दर से ब्याज समेत रकम वापिस करने पर बाध्य हैं। चूक (Default) की दशा में कम्पनी और इसके अधिकारी जिस ने चूक की है 1,000 रुपये प्रतिदिन जब तक यह चूक जारी रहती है या एक लाख रुपये इनमे से जो भी कम है दंड (penalty) के लिए उत्तरदायी होंगे।

3) नाम की जअशुद्धि या ना बताना (Non Disclosure/Misdescription Of Name) (धारा 42)

धारा 12 के अनुसार कम्पनी अपने नाम हुंड़ियों, वचन पत्रों, विनिमय पत्रों और ऐसे दस्तावेजो पर जो विहित है मुद्रित करेगी। अतः जब कोई कम्पनी अधिकारी कम्पनी की ओर से कोई अनुबंध विनिमय पत्र, हुंडी, वचनपत्र, चैक या मुद्रा के आदेश पर हस्ताक्षर करता है तो ऐसा व्यक्ति यदि कम्पनी के नाम का उल्लेख नहीं करता है या गलत नाम देता है व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होगा। इस प्रकार एक चैक पर एक कम्पनी का नाम “रे ब&लालं०5 [वागां।207 लिखा गया जबकि वास्तव नाम "L & R Limited" था। हस्ताक्षर करने वाले निदेशक को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया गया [Hendon v. Adelman(1973) | इसके अतिरिक्त कम्पनी और इसके अधिकारी जिनसे चूक हुई है 1000 रुपये प्रतिदिन जब तक चूक रहती है और एक लाख रुपये इनमें दोनों में जो कम है के उत्तरदायी होंगे।

4) धारा 210 या 212 या 213 के अन्तर्गत

किसी कम्पनी के कार्यकलापों का जांच (Investigation) करने हेतु निरीक्षक को उस के कार्य में सहायता (धारा 249)। धारा 249 में प्रावधान है कि यदि किसी कम्पनी के कार्यकलापों की छानबीन (Investigation) करने के लिए धारा 210 व धारा 212 या धारा 213 के अधीन निरीक्षक नियुक्त किया गया है तो निरीक्षक ऐसी किसी अन्य कम्पनी जो इस कम्पनी से सम्बन्धित है और एक ही प्रबंध के या समुह के अधीन है और ऐसे किसी व्यक्ति का जो किसी उचित समय पर प्रबंध निदेशक, प्रबंधक या कर्मचारी रहा हो, की जांच कर सकता है।

5) कम्पनी के स्वामित्व की छानबीन (घारा 216) (For Investigation Of Ownership Of A Company):

धारा 216 के अनुसार जहां केन्द्रीय सरकार को यह प्रतीत होता है कि ऐसा करने का कारण है तब वह एक या अधिक निरीक्षक नियुक्त कर सकती जो कम्पनी और उसकी सदस्यता सम्बन्धित मामलों की छानबीन करे और उन पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करे ताकि असली व्यक्ति का पता लगाया जा सके जो: (क) कम्पनी की सफलता या असफलता में चाहे वास्तविक रूप से या स्पष्ट रूप से, वित्तीय रूप से दिलचस्पी ले रहे हैं,/ लेते रहे हैं या (ख) कम्पनी की नीति को कौन नियंत्रित करने में या प्रभावित करने में समर्थ हैं या रहे हैं।

6) शक्ति-बाह्म कार्यों के लिए दायित्व (Liability For Ultravires Acts) :

कम्पनी के निदेशक और दूसरे अधिकारी उन सब कार्यों के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होंगे जो कम्पनी की ओर से किए हैं यदि वे शक्ति बाह्य हैं अर्थात कम्पनी की शक्ति के बाहर हैं।

7) कारोबार का छल कपट पूर्ण संचालन करना (Fraudulent) (धारा 339) :

धारा 339 के अनुसार यदि किसी कम्पनी के समापन (Winding UP) के दौरान में यह प्रतीत होता है कि कम्पनी का कारोबार कम्पनी के लेनदारों या किन्हीं अन्य व्यक्तियों को धोखा देने के आशय से किया गया है, ऐसी स्थिति में वे व्यक्ति जो जानबूझकर ऐसे कार्य सहयोगी थे व्यक्तिगत रूप से किसी ऋण या अन्य देयताओं के उत्तरदायी होंगे। ऐसे में अधिकरण (#77घ४) कम्पनी के विधिक अस्तित्व की अनदेखी कर सकता है और कपटी व्यक्तियों को व्यक्तिगत रूप से कम्पनी के ऋणों के लिए उत्तरदायी बना सकता है।

8) अन्य अधिनियमों में दायित्व (Liabilility Under Other Statutes) :

कम्पनी अधिनियम के अतिरिक्त निदेशक व अन्य अधिकारी व्यक्तिगत रूप से दूसरे कानूनों के प्रावधानों के अन्तर्गत उत्तरदायी होंगे । उदाहरण के तौर पर आयकर अधिनियम के अन्तर्गत जब निजी कम्पनी का समापन होता है और यदि पिछले वर्ष की आय पर बकाया आयकर कम्पनी से वसूल नहीं किया जा सकता तब हर व्यक्ति जो किसी भी समय सम्बंधित पिछले वर्ष में कम्पनी का निदेशक था कर देने के लिये संयुक्त व पृथक रूप से उत्तरदायी होगा। इसी प्रकार विदेशी विनिमय प्रबंध अधिनियम, 1999, (FEMA) के अन्तर्गत निदेशक व दूसरे अधिकारियों पर अधिनियम की अवहेलना करने के लिए संयुक्त व पृथक रुप से अभियोग किया जा सकता है।

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न्यायिक व्याख्याओं के अन्तर्गत (Under Judicial Interpretations)

न्यायलयों ने जब निगमन का आवरण हटाया है या हटा सकते हैं उन सब वादों (cases) का बताना कठिन है। कुछ ऐसे वादों का वर्णन किया जा सकता है जहां न्यायिक निर्णय दिया है। वह एक विचार बनाया जा सकता है कि किसी प्रकार की परिस्थितियों में निगम व्यक्तित्व का दिखावा हटाया गया था या जहां पर यदि आवश्यकता पड़ी तो उन व्यक्तियों को पहचाना गया और दण्डित किया गया।

1).. राजस्व सुरक्षा (Protection Of Revenue):

सर दिनशा मानेकजी पेटिट (1927) (Sir Dinshaw Maneckjee Petit) के वाद में, करदाता एक अरबपति व्यक्ति था लाभांश और ब्याज आय के रूप में बहुत बड़ी राशि अर्जित कर रहा था। उस ने चार निजी कम्पनियों का गठन किया और अपना निवेश उन कम्पनियों के शेयर के बदले हर कम्पनी को हस्तांतरित कर दिया | लाभांश और ब्याज की आय जो कम्पनी को मिलती थी वह सर दिनशा को ऋण के रूप वापिस कर देती थी। यह निर्णय दिया कि करदाता ने कम्पनी केवल आयकर ना देने के लिए गठित की थी।| कम्पनी और करदाता दोनों अलग नहीं थे, यह कोई व्यापार नहीं करती थी, परन्तु यह विधिक अस्तित्व केवल लाभांश और ब्याज प्राप्त करने के लिए गठन की गई थी और करदाता को ऋण देने का बहाना था।

2) धोखा या अनुचित आचरण रोकने के लिए (Prevention Of Fraud Or Improper Conduct):

यदि कम्पनी का उद्देश्य धोखा देना या अनुचित आचरण करना रहा है, तो न्यायालय ने निगमन के आवरण को हटाया है और वास्तविकता को देखा है। गिलफोर्ड मोटर कम्पनी बनाम होर्न (Dilford Motor Co.Ltd vs. Home) के वाद में होर्न को गिलफोर्ड मोटर कम्पनी का प्रबंध संचालक नियुक्त किया। करार अनुसार शर्त हुई कि कार्य छोड़ने के कुछ समय तक वह कम्पनी के ग्राहकों तोड़गा नहीं और कम्पनी के साथ स्पर्धा नहीं करेगा। वादी के निकालने के बाद होर्न ने एक कम्पनी गठित की जिस ने स्पर्धा कारोबार चलाया। सब शेयर उसने अपनी पत्नी और कम्पनी के कर्मचारी को आबंटित कर दिए। जिन्हें कम्पनी के निदेशक के रूप में नियुक्त कर दिया था। निर्णय दिया गया कि प्रतिवादी होर्न का कम्पनी पर नियंत्रण था इस कारण इस का गठन वादी कम्पनी के साथ करार तोड़ने के लिए केवल एक बहाना मात्र या दिखावा (Cloak Or Sham) थी | न्यायालय ने उसके और उसकी कम्पनी के विरुद्ध ग्राहक तोड़ने को रोकने के लिए निषेधादेश (Injunction) जारी किया। इसी प्रकार जोन्स बनाम लिपमेन (1962) (Jones vs. Lipman) के मुकदमे में जमीन के विक्रेता ने एक अनुबन्ध का निर्दिष्ट निष्पादन (Specific Performance ) टालने के लिए जमीन देने के लिए एक कम्पनी गठित की | निर्णय हुआ कि जमीन को कम्पनी को दे देने से विक्रेता के निर्दिष्ट निष्पादन को टाला नहीं सकता क्‍योंकि कम्पनी क्रय अनुबंध को टालने के लिए केवल एक दिखवा थी। विक्रेता और कम्पनी के विरुद्ध अनुबंध के निर्दिष्ट निष्पादन का निर्णय हुआ।

3) कम्पनी के शत्रु स्वरूप का निर्धारण करने के लिए ( Determination Of The Enemy Character Of The Company):

कम्पनी एक कृत्रिम व्यक्ति है वह मित्र या शत्रु नहीं हो सकती। लेकिन युद्ध के दौरान निगमन का आवरण हटाना आवश्यक होता है और उस कम्पनी के पीछे व्यक्ति शत्रु है या मित्र है यह देखना /ज्ञात करना आवश्यक होता है। यह इसलिए कि कम्पनी का अलग अस्तित्व होता है व इसका कार्य व्यक्ति ही चलाते हैं। डेमलर कम्पनी लिमिटेड बनाम कॉन्टिनेटल टायर एण्ड रबर कम्पनी लिमिटेड (Daimler Co Ltd vs. Continental Tyre & Rubber Co Ltd)(1916) के वाद में एक कम्पनी इंग्लैंड में पंजीकृत की गई इस कम्पनी का उद्देश्य जर्मनी में एक जर्मन कम्पनी द्वारा निर्मित टायरों को इंग्लैंड में बेचना था| इस कम्पनी के अधिकांश शेयरधारी व सभी निदेशक जर्मन थे। 4944 में इंग्लैंड व जर्मनी के बीच युद्ध हुआ। न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि दोनों निर्णय लेने वाली निकाय, निदेशक बोर्ड व अंशधारियों पर जर्मन लोगों का नियन्त्रण था। अतः कम्पनी जर्मन कम्पनी थी इसलिए यह शत्रु कम्पनी थी। अत: कम्पनी ने ऋण वसूली के लिए एक वाद दायर किया व इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया कि ऋण अदायगी शत्रु के साथ व्यापार करना होगा और शत्रु के साथ व्यापार करना सार्वजनिक नीति के विरुद्ध है।

4) नियंत्रित कम्पनियों को एजेंट के रुप में कार्य करने के लिए गठित करना (Formation Of Subsidiaries To act as agent ) :

मरचेन्डाईज ट्रांसपोर्ट लिमिटेड बनाम ब्रिटिश ट्रासंपोर्ट कमीशन (1982) के केस में एक परिवहन कम्पनी अपनी गाड़ियों के लिए लाईसेंस प्राप्त करना चाहती थी परन्तु वह अपने नाम से आवेदन नहीं दे सकती थी। इसलिए इसने एक नियंत्रित कम्पनी (Subsdiary) बनाई और उस के नाम से लाइसेंस के लिए आवेदन दिया। गाड़ियों को नियंत्रित कम्पनी के नाम पर हस्तांतरित करना था। निर्णय हुआ नियंत्रक व नियंत्रित कम्पनियां एक वाणिज्यिक इकाई है और लाईसेंस आवेदन को रद्द कर दिया गया। स्टेट ऑफ यू. पी. बनाम वी रेनू सागर पावर कम्पनी (State of UP vs. Renu Sagar Power Co Ltd) (1991) के वाद में यूपी सरकार ने कम्पनियां जो अपने प्रयोग के लिए बिजली उपज करती हैं कुछ उन्हें राजस (Subsidy) सहायता मिलेगी की घोषणा की। रेनु सागर पावर कम्पनी हिन्डलको की 100% नियंत्रित कम्पनी थी और सारी बिजली किसी और को नहीं बल्कि हिन्डलको को दे रही थी। उच्चत्तम न्यायालय ने निर्णय दिया कि नियंत्रक कम्पनी के पास नियंत्रित कम्पनी के 400% शेयर है और यह केवल नियत्रंक कम्पनी के लिए बनाई थी। इसलिए निगमन का आवरण हटाया जा सकता है। हिन्डलको को राजस सहायता मिलेगी। दोनों कम्पनियां एक ही इकाई हैं। आप नोट करें कि इस मामले में कम्पनी के हित के लिए आवरण हटाया गया, निदेशकों, अधिकारियों व कम्पनी को दंड देने के लिए नहीं। फिर जे, बी एक्सपोर्ट लिमिटेड बनाम बी. एस. इ. एस. राजधानी पावर लिमिटेड (2007) (J B Exports Ltd vs BSES Rajdhani Power Ltd) (2007) के मामले मे अपीलकर्ता नम्बर 1 कम्पनी ने अपील कर्ता नम्बर 2 कम्पनी की सारी शेयर पूंजी ले ली जो उसकी एक पंजीकृत उपभोक्ता थी। जिसे उसके फैक्टरी भवन में बिजली कनेक्शन दिया था और यह पता लगने पर कि बिजली का उपभोग अपीलकर्ता नम्बर 4 कर रहा है बिजली बोर्ड ने आदेश दिया कि अपीलकर्ता नम्बर 2 से किराए पर देने के कारण खर्चा वसूल हो। न्यायालय के निर्णय दिया कि “निगमन का आवरण” सिद्धांत लागू करने पर दोनों कम्पनियां एक ही इकाई हैं। इसलिए किराए (Sub Letting) का प्रश्न नहीं है।

5) जो कम्पनी अपने सदस्यों /शेयरधारियों के एजेंट के रूप में कार्य करने के लिए गठित की जाती है (Where a Company acts as agent for its members shareholders):

यदि शेयरधारियों व कम्पनी में ठहराव है कि कम्पनी शेयरधारियों के एक एजेंट के रूप में व्यापार चलाने के कार्य करगी, तो व्यापार वास्तव में शेयरधारियों का है। जहां इस तरह का ठहराव होता है, व्यक्तिगत रूप से शेयरघारियों पर दायित्व होगा। आर_ जी, फिल्मस लि: के वाद में एक अमरिकी कम्पनी ने भारत में “मानसून” नामक एक फिल्म का निर्माण किया और पूंजी भी लगायी। लेकिन तकनीकी रूप में यह फिल्म इग्लैंड में निर्गमित एक कम्पनी के नाम से बनायी गयी थी | ब्रिटिश कम्पनी की पूंजी, केवल एक नकद पाउन्ड के 100 शेयर यानि 100 पाउन्ड थी। इसमें से 90 शेयर अमरीकन कम्पनी के प्रेसीडेंट के पास थे। बोर्ड ऑफ ट्रेड ने फिल्‍म को ब्रिटिश फिल्‍म के रूप में पंजीकृत करने से इंकार कर दिया। न्यायालय ने बोर्ड ऑफ ट्रेड के मत की पुष्टि की| न्यायालय ने निर्णय दिया कि फिल्‍म की सच्ची निर्माता अमरीकी कम्पनी थी और ब्रिटिश कम्पनी ने तो केवल उस के एजेन्ट के रुप में कार्य किया।

6) आर्थिक अपराघ की दशा में (in case of economics offenccs):

शान्तनु रे बनाम यूनीयन ऑफ इन्डिया (Santanu Ray vs. Union of Indai) (1989) में यह निर्णय हुआ कि न्यायालय को निगमन का आवरण हटाने का अधिकार है यदि कोई आर्थिक अपराध हुआ है और विधिक दिखाने की आड़ में आर्थिक वास्तविकता क्‍या है। इस वाद में कम्पनी पर यह आरोप लगा कि उस ने केन्द्रीय उत्पाद व नमक अधिनियम 4944 की धारा 44() का उल्लंघन किया है। न्यायालय ने निर्णय दिया कि निर्णय देने वाले अधिकारी निगमन का आवरण हटा सकते हैं यह पता करने के लिए कि कौन से निदेशक धोखा, तत्थयों को छुपा या जानबूझकर अशुद्ध कथन या सत्य छुपा रहे थे या अधिनियम के प्रावधानों का या उस के नियमों का उल्लंघन कर रहे थे और उत्पाद शुल्क नहीं दे रहे थे।

7) जब कम्पनी का उपयोग कल्याणकारी कानूनों से बचना हो (Where Company is used to avoid welfare Legislation):

जहां यह पता लगे कि नई कम्पनी गठन करने का उद्देश्य केवल कर्मियों को बोनस की राशि घटा देने के एक साधन के रूप में उपयोग करना था, उच्चतम न्यायालय ने निगमन के आवरण को हटा कर व्यवहारिक स्थिति का पता लगाने का निर्णय दिया। वर्कमैन ऑफ एसोसिटिड रबर इन्टस्ट्रीज लि. बनाम एसेोसिएटिड रबर इन्टस्ट्रीज लि. (Workmen of Associated Rubber Industry Ltd vs. Associated Rubber Industry Ltd) (1986) वाद में एक नई कम्पनी का गठन किया गया जिस की अपनी कोई परिसम्पत्ति नहीं थी सिवाय उस परिसम्पत्ति के जो प्रधान कम्पनी ने इसे हस्तांतरित की थी। नई कम्पनी का अपना कोई व्यवसाय भी नहीं था। इसे हस्तांतरित किये गये शेयरों पर लाभांश प्राप्त होता था| इस प्रकार प्रधान कम्पनी सकल लाभों को कम करने में सफल हुई और इससे मजदूरों को देय बोनस राशि घटा दी गयी। उच्चतम न्यायालय ने नयी कम्पनी के स्वतंत्र पद को खारिज किया और निर्देश दिया कि नई कम्पनी को दी गई लाभांश की राशि भी प्रधान कम्पनी के सकल लाभों को निर्धारण करते समय शामिल की जाएगी |

8) जब कम्पनी का किसी अवैध या अनुचित उद्देश्य के लिए उपयोग किया जाए (Where company is used for some illegal or improper purpose ) :

न्यायालयों ने निगमन का आवरण उठाया है जहां इसका अवैध या अनुचित कार्य के लिए एक माध्यम के रूप उपयोग में किया गया हो। पी. एन. बी. फाईनेंस लि. बनाम भीतल प्रसाद जैन (1983) व सेबी बनाम लिबरा प्लांटेशन (लि) (1999) (PNB Finance Ltd vs. Shital Prasad Jain (1983) And SEBI vs. Libra Plantation Ltd (1999) | बाम्बे उच्च न्यायालय ने जो प्रापर्टी छल कपट स्कीम द्वारा प्राप्त की गयी थी उसको भी तीसरे पक्ष के पास से वापिस लेने का आदेश दिया।

9) न्यायालय का अपमान करने पर दंड (To Punish for contempt of court):

कम्पनी एक कृत्रिम व्यक्ति होते हुए भी न्यायालय के आदेश का उल्लघंन नहीं कर सकती। जो व्यक्ति गलती पर हैं उन का पता लगाना चाहिए (ज्योती लि. बनाम कवंलजीत कौर भसीन (1987) (Jyoti Ltd vs. Kanwaljit Kaur Bhasin) |

10) कम्पनी की तकनीकी योग्यता देखना (For Determination of technical competence of the company):

उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि तकनीकी योग्यता के लिए प्रर्व॑तकों का अनुभव कम्पनी का अनुभव माना जाएगा। यहां आप यह नोट करेंगे कि कम्पनी के लाभ के लिए भी निगमन का आवरण हटाया गया। न्यू होराईजन लि: बनाम यूनीयन ऑफ इन्डिया (New Horizons Ltd vs. Union of India) |

11) जहां कम्पनी केवल धोखा या दिखावा है (Where Company is mere Sham or Cloak) :

दिल्‍ली डवलपमेंट ऑर्थोरटी बनाम स्कीपर कस्ट्रक्शन कम्पनी (पी०) लि. (Delhi Development Authority vs. Skipper Contruction Company (p) (1996) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि यदि एक निदेशक और उस को फैमिली ने कई कम्पनियां खोल दी हैं तो उन्हे एक ही अस्तित्व माना जाएगा यदि यह पता लगे कि निगमित निकाय केवल एक धोखा है और यह केवल अवैध कार्य या लोगों को धोखा देने के लिए बनायी गयी हैं।