लेखांकन की अशुद्धियाँ के प्रकार निम्नलिखित है :
जब अशुद्धियाँ केवल एक ही खाते में हो अथवा अशुद्धि केवल एक खाते के एक ही पक्ष को प्रभावित करती हो तो ऐसी अशुद्धि को एकपक्षीय अशुद्धियाँ कहा जायेगा। इस प्रकार की अशुद्धि का सुधार प्रभावित लेखे की स्थिति के अनुसार डेबिट या क्रेडिट करके किया जाता है।
द्विपक्षीय अशुद्धियाँ दो खातों पर प्रभाव डालती हैं। अतः इनका संशोधन जर्नल प्रविष्टियों के द्वारा किया जाता है। द्विपक्षीय अशुद्धियाँ को सुधरने के लिए एक खाते को डेबिट तथा दूसरे को क्रेडिट किया जाता है।
सहायक बही के योग लगाने में गलती हो सकती है। योग कम हो सकता है अथवा अधिक। योग कम लगाने अथवा अधिक लगाने को ही योग की अशुद्धि कहा जायेगा।
यदि किसी सौदे का जर्नल या पुस्तक में लेखा ही न किया जाय तो इसे पूर्णतया छूट जाने वाली अशुद्धि कहा जाता है।
कभी-कभी सौदे का लेखा संबंधित सहायक बही में कर दिया जाता है परन्तु उसे दूसरे खाते में नहीं खतियाया जाता है तो इसे आंशिक रूप से छूट जाने वाली अशुद्धि कहा जाता है। इस तरह की गलती को सुधारने के लिए उचन्त खाता अथवा भूल-चूक खाता का प्रयोग किया जाता है।