प्रबंध के कार्य क्या है ?
प्रबन्ध के निम्नलिखित कार्य है :-
- नियोजन (Planning) :- प्रबंध भविष्य की आवश्यकताओं का पूर्वानुमान लगाता है ताकि निर्धारित लक्ष्यों की दृष्टि से किए जाने वाले वर्तमान प्रयासों को उनके अनुरूप बनाया जा सके।नियोजन का मतलब होता है कि क्या करना है, क्यों करना है, कहाँ करना है, कब करना है, कैसे करना है तथा किस व्यक्ति द्वारा करना है, इन सभी बातों पर ध्यान देना। इसके साथ ही नियोजन के अंतगर्त विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के तरीकों पर भी विचार किया जाता है।
- संगठन (Organisation) :- नियोजन द्वारा उद्देश्य एवं लक्ष्य निर्धारित कर लेने के पश्चात उन्हें कार्यन्वित करने की समस्या आती है जिसे प्रबंध संगठन के माध्यम से करता है। संगठन निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति करने वाले तंत्र है। उपक्रम की योजनाएं चाहे कितनी भी अच्छी एवं आकर्षक क्यों न हो यदि अच्छे संगठन का आभाव है तो सफलता की कामना करना निष्फल होगा। इस तरह कुशल एवं प्रभावी संगठन का निर्माण करना बहुत जरूरी रहता है।
- नियुक्तियाँ (Staffing) :- प्रबंध का प्राथमिक कार्य है कर्मचारियों की नियुक्तियाँ करना है जिसका अर्थ है - संगठन की योजना के अनुसार आवश्यक पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों की नियुक्ति करना उनको आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करना।
- निर्देशन (Directing) :- प्रबंध मूलतः व्यक्तियों से कार्य कराने व करने की कला है। प्रबंध का चौथा महत्वपूर्ण कार्य है उपक्रम को निर्देशन अथवा संचालन प्रदान करना। निर्देशन का अर्थ है - संस्था में विभिन्न नियुक्त व्यक्तियों को यह बताना कि उन्हें क्या करना है, कैसे करना है, कब करना है तथा यह देखता है कि वे व्यक्ति अपना कार्य उसी भांति कर रहे हैं या नहीं। निर्देशन प्रबंध का वह महत्वपूर्ण कार्य है जो संगठित प्रयत्नों को प्रारम्भ करता है।
निर्देशन के अंतर्गत निम्न चार क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है :
- पर्यवेक्षण (Supervision)
- सम्प्रेषण (Communication)
- नेतृत्व (Leadership)
- अभिप्रेरणा (Motivation)
- नियंत्रण (Controlling) :- नियन्त्रण से आशय केवल किए गए कार्य की जाँच करना मात्र ही नहीं है बल्कि ऐसे उपाय करना जिससे उपक्रम के कारोबार को निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति हेतु निश्चित योजनाओं के अनुसार चलाया जा सके और यदि उसमें कहीं कोई अंतर आ जाए तो सुधारात्मक कदम उठाया जा सके। नियंत्रण प्रबंध का एक भाग है।