दरअसल, बोनस शेयर का संबंध कैपिटलाइजेशन ऑफ रिजर्व से है।
इसलिए पहले हम कैपिटलाइजेशन ऑफ रिजर्व क्या है, इसे समझते हैं। दरअसल, जब कोई कंपनी अपने व्यवसाय के दौरान वित्तीय वर्ष में लाभ अर्जित करती है, तब कंपनी नियमित खर्चे निकालकर, देनदारियाँ निकालकर, लाभांश निकालकर बची हुई राशि भविष्य में विस्तार के लिए रिजर्व रखती है।
साल-दर-साल इस प्रकार कंपनी का अवितरित लाभ इकट्ठा होकर रिजर्व के रूप में कंपनी के पास रहता है। कंपनी अपनी नीतियों के अनुसार सरकारी कानूनों के तहत बोनस इश्यू जारी करके इस रिजर्व पूजी के कुछ भाग का कैपिटलाइजेशन (पूँजीकरण) करती है। इस प्रक्रिया में तत्कालौन शेयरधारकों को उनके शेयर के अनुपात में बोनस शेयर जारी किए जाते हैं।
इसे बोनस इश्यू कहते हैं। इस प्रक्रिया में कंपनी का रिजर्व फंड इक्विटी में परिवर्तित होता है। बस्तुतः यह मात्र एक बुक एंट्री है। बोनस शेयरों पर कोई कीमत नहीं बसूली जाती है तथा शेयरधारकों की संख्या भी अपरिवर्तित रहती है।
इस श्रकार शेयरधारकों का आनुपातिक स्वामित्व भी अपरिवर्तित रहता है। हाँ, यह हो सकता है कि बोनस शेयर जारी करने के पश्चात् कंपनी के शेयरों की बाजार की कीमत में कुछ गिरावट आए, जो बोनस इश्यू के अनुपात में होती है। साधारणतया कंपनी प्रतिवर्ष अपने लाभांश (डिविडेंड) की दर बनाए रखती है। शेयरधारकों को बोनस इश्यू मिलने के बाद ज्यादा डिविडेंड मिलता है तथा कालांतर पें
बाजार में शेयरों की कीमत फिर अपना स्थान बना लेती है। इस प्रकार शेयरधारकों को काफी लाभ होता है।