वैज्ञानिक प्रबंध पूंजी तथा श्रम में सामंजस्य स्थापित करना चाहता है जिसके द्वारा इन दोनों के बीच के अंतर को कम किया जा सके तथा दोनों यह समझें कि उनका एक-दूसरे के बिना निर्वाह नहीं हो सकता। इसके लिए पूँजीपत को श्रमिकों के कल्याण की ओर विशेष रूप से जागरूक रहना चाहिए तथा प्रयत्न करना चाहिए कि श्रमिक उस कारखाने को अपना ही कारखाना समझे तथा उसके विकास में अपना ही विकास अनुभव करें। श्रमिकों को भी ऐसा ही मार्ग अपनाना चाहिए जिससे कारखाना में किसी प्रकार की कटुता उत्पन्न न हो।
प्रसिद्ध विद्वान श्री हण्ट के अनुसार - सुंदर तथा नवीनतम औजारों तथा मशीनों का प्रयोग तब ही सुखद परिणाम दे सकता है जब पूंजीपति तथा श्रमिकों के मानवीय संबंध सुदृढ़ हों तथा उनके बीच की बढ़ती हुई विषमता को दूर किया जा सके।