नियोजन प्रबंध का प्रमुख एवं प्राथमिक कार्य है।
नियोजन में इस बात का निर्णय करना कि क्या करना है, कहाँ करना है, कब करना है, कैसे करना है और किस व्यक्ति द्वारा किया जाना है, शामिल किया जाता है। तो इस तरह हम कह सकते है नियोजन का मतलब भविष्य के बारे में अनुमान लगाना है।
प्रबंध की प्रक्रिया नियोजन से प्रारम्भ होती है तथा नियोजन पर ही समाप्त मानी जाती है। किसी भी कार्य को करने से पूर्व उसके बारे में सोच-विचार कर एक योजना तैयार करके और उसी के आधार पर कार्य करने से उस कार्य में अधिक सफलता मिलने की संभावना होती है। बिना योजना बनाये किसी कार्य को करने में कठिनाईयों का सामना करना पड़ सकता है।
इस तरह व्यवसाय के प्रबंध में नियोजन का काफी महत्व है।
प्रसिद्ध विद्वान ऊर्विक के अनुसार नियोजन मूल रूप से कार्यों को सुव्यवस्थित ढंग से करने, कार्य को करने से पूर्व उस पर मनन करने तथा कार्यों का अनुमानों की तुलना में तथ्यों के आधार पर करने का प्राथमिक रूप में एक मानसिक चिन्तन है।
प्रसिद्ध विद्वान श्री शील्ड के अनुसार योजना विभाग प्रबंध का हृदय है जिसका एकमात्र कार्य उत्पादन के विभिन्न पहलुओं में कार्यरत कर्मचारियों की आवश्यकताओं को पूरा करना है।
प्रसिद्ध विद्वान जार्ज आर. टैरी के अनुसार नियोजन भविष्य के गर्भ में देखने की विधि या कला है, यह भविष्य की आवश्यकताओं का पूर्वानुमान लगाना है, जिससे निर्धारित लक्ष्यों की दृष्टि से किए जाने वाले वर्तमान प्रयासों को उनके अनुरूप बनाया जा सके।
इस प्रकार नियोजन तथ्यों पर आधारित भविष्य के कार्यक्रम का एक उद्देश्यपूर्ण मानसिक चिन्तन है।