जब कंपनी स्वयं अपने शेयर सेकंडरी मार्केट (द्वितीयक बाजार) से खरीदने लगे, ताकि कंपनी का स्वामित्व कंपनी के कुछ प्रमोटरों के हाथ में वापस आ सके या
किसी निजी खरीदार के द्वारा कंपनी के अधिकांश शेयर खरीद लिये जाएँ तो ऐसी स्थिति में कंपनी पर मालिकाना हक निजी व्यक्ति के हाथ में चला जाता है।प्रायः ऐसी स्थिति तब आती है, जब कंपनी का व्यवसाय अच्छा नहीं चल रहा हो तथा उसके शेयरों की बाजार कीमत बुक वैल्यू से भी नीचे आ जाए। तब कंपनी प्रबंधन सस्ती दरों पर अपने शेयर सेकंडरी मार्केट से खरीद लेता है। ऐसा करके कंपनी प्रबंधन कंपनी को किसी दूसरे के द्वारा हथियाए (टेक ओवर किए) जाने की संभावना को भी टाल सकता है।
ग्रोइंग पब्लिक से क्या मतलब होता है ?
जब कोई निजी कंपनी अपना विस्तार करने के लिहाज से अपने शेयर पब्लिक इश्यू लाकर बिक्री के लिए आम जनता के लिए प्रस्तुत करे तो इस स्थिति को 'ग्रोइंग पब्लिक' कहते हैं।संस्थागत दलाल (इंस्टीट्यूशनल ब्रोकर) क्या है ?
म्यूचुअल फंड, यूनिट ट्रस्ट, एल.आई.सी. या अन्य दूसरे संस्थानों के लिए शेयर बाजार से शेयरों और बांडों की खरीद व बिक्री करनेवाला ब्रोकर इंस्टीट्यूशनल ब्रोकर' कहलाता है। संस्थागत ब्रोकर भारी संख्या में खरीद-फरोख्त करते हैं तथा इन्हें आम निवेशक की तुलना में काफी कम कमीशन चुकाना होता है।
संस्थागत निवेशक (इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर) क्या है ?
बैंक, म्यूचुअल फंड, यूनिट ट्रस्ट तथा लाइफ इंश्योरेंस कंपनियाँ इत्यादि सिक्यूरिटीज (शेयर्स और बांड) के संस्थागत निवेशक होते हैं। संस्थागत निवेशक बड़ी मात्रा में खरीद-फरोख्त करते हैं। अत: ये शेयर मार्केट में सहायक की भूमिका (सपोर्टिव रोल) अदा करते हैं। जब आम निवेशक व सट्टेबाज शेयर मार्केट से आशंकित होकर ट्रेडिंग गतिविधियों से दूर रहते हैं, ऐसी अवस्था में संस्थागत निवेशक अपना प्रभाव दिखाकर शेयर मार्केट में गतिविधि बनाए रखते हैं।
तरलता (लिक्विडिटी) क्या है ?
नकद (कैश) की उपलब्धता अथवा ऐसी संपत्ति का स्वामित्व, जिसे तुरंत नकदी में परिवर्तित किया जा सके, 'लिक्विडिटी' या 'तरलता' कहलाता है। यद्यपि बाजार में किसी भी संपत्ति को औने-पौने दामों में बेचकर नकदी हासिल की जा सकती है, परंतु यह स्वस्थ स्थिति नहीं है। तरलता की सही स्थिति में ऐसी संपत्ति को बाजार में सही दामों पर बेचे जाने का माहौल होना चाहिए।