फंडामेंटल नजरिए से शेयर का मूल्यांकन किया जाए तो निवेशक किसी भी शेयर की वह कीमत तय करता है, जो उसके अनुसार उस शेयर में छिपे हुए लाभ के अनुसार अनुकूल हो।
यहाँ छिपे हुए लाभ से तात्पर्य है कि कोई निवेशक जिस अवधि के लिए उस शेयर में निवेश करना चाहता है, उस अवधि में वह शेयर कितना डिविडेंड देगा तथा उस शेयर की बाजार कीमत में कितनी अनुमानित वृद्धि होगी। इस नजरिए से निम्नलिखित फॉर्मूला बनाया जा सकता है।
P = D/K-g
यहाँ P निवेश करने के प्रारंभ में शेयर की बाजार कीमत।
D अपेक्षित अवधि, जिसके लिए निवेश किया जाता है।
K निवेशक द्वारा अनुमानित शेयर की बाजार कीमत में हुई वृद्धि द्वारा अर्जित रिटर्न की दर।
g - शेयर द्वारा प्राप्त डिविडेंड वृद्धि की दर।
यह फॉर्मूला 'गोर्डंस कांस्टेट डिविडेंड ग्रोथ रेट मॉडल' कहलाता है। यह इस विचार पर आधारित होता है कि डिविडेंड एक निश्चित दर से वृद्धि करता है। किसी भी कंपनी की भविष्य में होनेवाली आय कई बातों पर निर्भर करती है और इसी के अनुसार उस कंपनी द्वारा अपने शेयरों पर दिया जानेवाला डिविडेंड भी अनिश्चित होता है। चूँकि भविष्य में दिए जानेवाले डिविडेंड का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है, अतः गणना के लिए एक तरीका यह है कि डिविडेंड वृद्धि की दर को स्थायी माना जाए।
कई बार सिक्यूरिटीज का ट्रांजेक्शन ट्रेडिंग के आधिकारिक समय के पश्चात् भी होता है, नियमतः यह गैर-कानूनी है। ऐसी गैर-कानूनी ट्रेडिंग, जो स्टॉक एक्सचेंज के दायरे से बाहर की जाती है, वह 'कर्ब ट्रेडिंग' कहलाती है, जिसे 'ग्रे ट्रेडिंग' भी कहते हैं।
यह फैक्टर किसी शेयर की अंदरूनी स्थिरता को दरशाता है। उदाहरण के तौर पर, यदि कोई शेयर जिसका अल्फा फैक्टर 1.5 हो–अर्थात् इस शेयर की कीमत में एक वर्ष में 50 प्रतिशत का उछाल इसकी अंदरूनी मजबूती के चलते आ सकता है तथा यह बाजार के ट्रेंड से भी अप्रभावित रहता है।