कम्पनी शब्द से तात्पर्य कुछ व्यक्तियों की एक सामान्य उद्देश्य या उद्देश्यों के लिए
बनाई गयी एक संस्था से है। वास्तव में, व्यक्तियों की विविध प्रकार के उद्देश्यों के
लिए सहयोग करने की इच्छा हो सकती है। इसमें आर्थिक और गैर आर्थिक उद्देश्य
दोनों हैं। परन्तु “कम्पनी” शब्द का प्रयोग केवल तब किया जाता है जब विभिन्न
व्यक्ति आर्थिक उद्देश्य के लिए संगठित होते हैं अर्थात् एक व्यवसाय से लाभ अर्जित
करने के लिए। इस का अर्थ यह नहीं है कि कम्पनी का गैर आर्थिक या पूर्त
(परोपकारी) उद्देश्यों (Charitable Purposes) के लिये गठन नहीं किया जा
सकता | कम्पनी अधिनियम 2043 की धारा 8 के अनुसार गैर लाभ वाली
संस्थायें कम्पनी बन सकती हैं।
साझेदारी फर्म प्रायः अपने को A,B,C एंड कम्पनी की तरह कहती हैं। लेकिन ऐसा
नाम देने से फर्म विधिक रूप में कम्पनी नहीं बन जाती है, यह नाम केवल इस बात
को दर्शाता है कि इस संगठन में अन्य व्यक्ति भी शामिल हैं।
विधिक शब्दावली में, एक कम्पनी का अर्थ कम्पनी अधिनियम 2043 या पहले के
कम्पनी अधिनियमों में से किसी अधिनियम के अन्तर्गत निगमित या पंजीकृत कम्पनी
है। कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 2(20) के अनुसार कम्पनी का अर्थ है, इस
अधिनियम के अन्तर्गत संगठित और पंजीकृत की गयी कम्पनी या किसी पहले
अधिनियम के अन्तर्गत। लेकिन यह परिभाषा एक सम्पूर्ण परिभाषा नहीं है क्योंकि
इससे एक कम्पनी का अर्थ एवं विशेषताएं पता नहीं चलती। इस कारण हमें प्रसिद्ध
न्यायधीशों द्वारा दी गयी कम्पनी की परिभाषा देखनी होगी।
लार्ड जस्टिस लिंडले ने एक कम्पनी की परिभाषा इन शब्दों में की है: “कम्पनी
से अभिप्राय उन अनेक व्यक्तियों की संस्था से होता है जो किसी सामान्य स्टॉक
(Common Stock) में अपना धन या उसके मूल्य की वस्तु लगाते हैं और उसका
प्रयोग वे किसी व्यापार या व्यवसाय में करते हैं तथा उससे होने वाले लाभ या हानि
जैसे भी स्थिति हो) को आपस में बॉँट लेते हैं। इस प्रकार बनाया गया सामान्य स्टॉक
धन के रुप में होता है और इसे कम्पनी की पूँजी कहा जाता है। जो लोग इसमें धन
लगाते है और जो इसके स्वामी होते है उन्हें सदस्य कहा जाता है। प्रत्येक सदस्य
जिस अनुपात में इस पूँजी का स्वामी होता है उसे उसका शेयर कहा जाता है। शेयर
सदा ही हस्तांतरणीय होते हैं, यद्यपि हस्तांतरणीयता के संबंध में कुछ न कुछ प्रतिबंध
भी लगे होते हैं।
एक अन्य परिभाषा चीफ जस्टिस मार्शल ने दी है। उनके अनुसार “कम्पनी वह
व्यक्ति है जो कृत्रिम, अदृश्य और अमूर्त होती है तथा जो केवल कानून की नजर में
ही विद्यमान होती है। कानून द्वारा सर्जित होने के नाते इसमें केवल वे ही विशेषताएं
होती है जिसें इसे बनाने वाला चार्टर इसको देता है, स्पष्ट रूप से या इसके अस्तित्व
के संदर्भ में |“
लार्ड हैने (Lord Haney) के अनुसार “कम्पनी एक निगमित संस्था है जो कानून
द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है, जिसका अपना अलग अस्तित्व होता है और
जिसका शाश्वत उत्तराधिकार और सार्वमुद्रा (Common Seal) होती है।
ऊपर दी गयी परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि कम्पनी का एक सामुहिक व विधिक
व्यक्ति होता है। यह एक कृत्रिम व्यक्ति है जिसका केवल विधिक अस्तित्व होता है।
इसका एक स्वतंत्र विधिक आस्तित्व, एक सार्वमुद्रा और शाश्वत उत्तराधिकार होता है।