यद्यपि कम्पनी एक कानूनी व्यक्ति (परन्तु कृत्रिम) है, फिर भी भारतीय संविधान
या नागरिकता अधिनियम 1955 के अंतर्गत कम्पनी एक नागरिक नहीं है, हैवी
इन्जीनियरिंग मजदूर यूनियन बनाम स्टेट ऑफ बिहार (1969) ( Heavy Engineering Mazdoor Union Vs State Of Bihar (1969)| स्टेट ट्रेडिंग
कॉरपोरेशन बनाम सी. टी. ओ. 1963 (State Trading Corporation Ltd vs. CTO (1963)) में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि निगम जिसमें कम्पनी
शामिल है उसे भारतीय संविधान के अन्दर नागरिक का दर्जा नहीं दिया जा सकता।
भारतीय संविधान में जो मौलिक अधिकार केवल नागरिकों को मिले हैं कम्पनी को
नहीं मिलते | फिर भी यह चाहे नागरिक है या नहीं उन मौलिक अधिकारों का संरक्षण
मांग सकती है जो सब व्यक्तियों को मिलते हैं जैसे कि संपत्ति पर स्वामित्व अधिकार |
Narasarsopeta Electronic Corporation LTD v State of Madras (1951)
के वाद में उच्च न्यायालय ने कहा कि कम्पनी जिस का भारतीय कम्पनी अधिनियम
के अर्न्नतत निगमन हुआ है यदि वह संविधान की धारा 5 में “नागरिक” की परिभाषा
की शर्तें पूरी नहीं करती अत: नागरिक नहीं है।
कोई कम्पनी मौलिक अधिकारों की इस आधार पर मांग नहीं सकती कि यह नागरिकों
का समूह है। जब कम्पनी या निगम का गठन होता है, कम्पनी या निगम का व्यापार
नागरिकों का व्यापार नहीं होता बल्कि उस कम्पनी या निगम का होता है जो निगमित
हुई है और निगमित संस्था के अधिकार उस आधार पर देखने चाहिये, इस धारणा
पर नहीं आंकना चाहिए कि वह अधिकार एक व्यक्तिगत नागरिक का है - उच्चतम
न्यायालय Telco Ltd vs State Of Bihar (1964) के वाद में।
यद्दपि कम्पनी नागरिक नहीं है फिर भी उसके पास राष्ट्रीयता, अधिवास (Docmicle)
व निवास स्थान है। उस देश और स्थान पर जहां इसका निगमन हुआ है वह उसकी
निवासी व नागरिक (Resident And National) है।