पूंजीपति का कार्य केवल पूंजी उधार देना है।
पूंजीपति किसी व्यवसाय में पूंजी प्रदान करता है और इस तरह वह व्यवसाय का ऋणदाता होता है। पूंजीपति को केवल ब्याज मिलता है चाहे व्यवसाय से लाभ हो या हानि।
पूंजीपति को व्यवसाय के लाभ-हानि से कोई संबंध नहीं होता है। उसे तो बस ब्याज सहित अपनी पूंजी लेने का अधिकार होता है।